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Sambhav-2025

  • 06 Feb 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 58: "राज्यसभा एक आवश्यक संशोधन कक्ष है, लेकिन इसमें प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक वैधता का अभाव है।" भारत के संसदीय लोकतंत्र में राज्यसभा की ताकत और कमज़ोरियों पर आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • परिचय में, एक संशोधन सदन के रूप में राज्यसभा की भूमिका और इसके महत्त्व को परिभाषित कीजिये।
    • स्पष्ट कीजिये कि किस प्रकार इसमें लोकसभा की तुलना में प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक वैधता का अभाव है।
    • प्रासंगिक उदाहरणों और आँकड़ों के साथ इसकी ताकत, कमज़ोरियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
    • इसकी आवश्यकता और सुधार के क्षेत्रों पर एक संतुलित निष्कर्ष प्रदान कीजिये।

    परिचय: 

    राज्यसभा (राज्यों की परिषद) भारतीय संसद के ऊपरी सदन के रूप में कार्य करती है, जो विधायी समीक्षा और संघीय प्रतिनिधित्व में मत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालाँकि सीधे निर्वाचित लोकसभा के विपरीत, राज्यसभा के सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं, जिससे इसकी लोकतांत्रिक वैधता पर प्रश्न उठते हैं। इसके बावजूद, एक विचार-विमर्श और संशोधन कक्ष के रूप में इसकी भूमिका इसे भारत के संसदीय लोकतंत्र का एक आवश्यक स्तंभ बनाती है।

    मुख्य भाग:

    राज्यसभा की शक्तियाँ एक आवश्यक संशोधन कक्ष के रूप में:

    • विधायी संशोधन एवं गुणवत्ता नियंत्रण:
      • यह लोकसभा के जल्दबाज़ी में लिये गए निर्णयों की समीक्षा करने के लिये दूसरे सदन के रूप में कार्य करता है तथा विधेयकों की विस्तृत जाँच सुनिश्चित करता है।
      • उदाहरण: वर्ष 2002 में, राज्यसभा ने आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) को पारित करने से पहले उसमें सुधार पर ज़ोर दिया था।
    • संघीय प्रतिनिधित्व एवं राज्य हित:
      • राष्ट्रीय निर्णय लेने में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को प्रतिनिधित्व प्रदान करता है।
      • छोटे राज्यों की आवाज़ सुनिश्चित करके बहुसंख्यकवादी प्रवृत्तियों को रोका जाता है।
      • उदाहरण: GST के कार्यान्वयन पर चर्चा करते समय राज्यसभा में राज्यों की चिंताओं पर विस्तृत बहस हुई।
    • स्थायी सदन की निरंतरता सुनिश्चित करना:
      • लोकसभा के विपरीत, जो हर पाँच साल में भंग हो जाती है, राज्यसभा एक स्थायी निकाय है जिसके एक-तिहाई सदस्य हर दो साल में सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
      • संस्थागत स्मृति सुनिश्चित करता है और नीति में अचानक होने वाली असंततता को रोकता है।
    • विशेषज्ञों एवं प्रमुख व्यक्तियों के लिये स्थान:
      • विज्ञान, साहित्य, कला और सामाजिक सेवा जैसे क्षेत्रों से 12 प्रतिष्ठित व्यक्तियों को नामांकित करने की अनुमति देता है (अनुच्छेद 80)।
      • गुणवत्तापूर्ण बहस और नीति-निर्माण को बढ़ावा देता है।
      • उदाहरण: डॉ. बी.आर. अंबेडकर, रुक्मिणी देवी अरुंडेल, सचिन तेंदुलकर ने मनोनीत सदस्य के रूप में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
    • लोकलुभावनवाद और चुनावी दबावों का विरोध:
      • सदस्य सीधे तौर पर निर्वाचित नहीं होते, जिससे उन्हें वोट बैंक की राजनीति की चिंता किये बिना तर्कसंगत नीति-निर्माण में संलग्न होने की अनुमति मिलती है।
      • उदाहरण: भूमि अधिग्रहण अधिनियम (2015) को कमज़ोर करने से रोकने में राज्यसभा की भूमिका ने किसानों के हितों की रक्षा की।

    राज्यसभा की कमज़ोरियाँ: प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक वैधता का अभाव:

    • अप्रत्यक्ष चुनाव तंत्र:
      • सदस्यों का चुनाव राज्य विधानसभाओं के विधायकों द्वारा किया जाता है, जिससे राजनीतिक सौदेबाज़ी और सत्तारूढ़ दलों द्वारा अनुचित प्रभाव को बढ़ावा मिलता है।
      • उदाहरण: राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग और खरीद-फरोख्त के आरोप इसकी लोकतांत्रिक विश्वसनीयता को कम करते हैं।
    • अनुपातहीन प्रतिनिधित्व:
      • राज्यसभा में जनसंख्या के अनुपातिक प्रतिनिधित्व का पालन नहीं किया जाता है। छोटे राज्यों में कम जनसंख्या के बावजूद समान प्रतिनिधित्व होता है।
      • उदाहरण: उत्तर प्रदेश (200 मिलियन लोग) में 31 सीटें हैं, जबकि सिक्किम (0.6 मिलियन लोग) में 1 सीट है, जो प्रतिनिधित्व को विकृत करता है।
    • अवरोधवाद और राजनीतिक गतिरोध:
      • चूँकि यह प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित निकाय नहीं है, इसलिये राज्यसभा का उपयोग कभी-कभी रचनात्मक बहस के बजाय राजनीतिक विलंब और अवरोध उत्पन्न करने के लिये किया जाता है।
      • उदाहरण: महिला आरक्षण विधेयक (पहली बार वर्ष 1996 में प्रस्तुत किया गया) वर्ष 2023 तक राज्यसभा में आम सहमति के अभाव के कारण रुका हुआ है।
    • वित्तीय शक्ति का अभाव:
      • राज्यसभा धन विधेयक को अस्वीकार नहीं कर सकती (अनुच्छेद 110) तथा केवल 14 दिनों के भीतर संशोधन का सुझाव दे सकती है, जिससे आर्थिक मामलों में इसकी भूमिका कमज़ोर हो जाती है।
      • उदाहरण: आधार अधिनियम 2016 को राज्यसभा की जाँच को दरकिनार करते हुए धन विधेयक के रूप में पारित किया गया था।
    • विशेषज्ञों पर राजनीतिक दलों का प्रभुत्व:
      • यद्यपि राज्यसभा का उद्देश्य विशेषज्ञ राय प्रदान करना है, लेकिन यह अक्सर पराजित राजनेताओं के पुनर्वास का काम भी करती है।
      • उदाहरण: अरुण जेटली और मनमोहन सिंह जैसे नेताओं ने लोकसभा चुनाव न लड़ने के बावजूद राज्यसभा के माध्यम से राजनीति में प्रवेश किया।

    निष्कर्ष:

    राज्यसभा एक अपरिहार्य संशोधन कक्ष बनी हुई है, जो शासन में जाँच और संतुलन सुनिश्चित करती है। हालाँकि इसकी प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक वैधता की कमी और राजनीतिक दुरुपयोग इसकी प्रभावशीलता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करता है। जबकि यह संघवाद की रक्षा करता है और जल्दबाज़ी में लिये जाने वाले निर्णयों को रोकता है, चुनावों में पारदर्शिता, पार्टी के प्रभाव को सीमित करने और जवाबदेही बढ़ाने जैसे सुधार इसकी लोकतांत्रिक साख को मज़बूत कर सकते हैं।

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